ऋषिकेश

आदिवासी, वनवासी और जनजातियों की अद्भुत परम्परा, ज्ञान, कौशल और श्रद्धा का अनुपम संगम ’माँ शबरी रामलीला- स्वामी चिदानन्द सरस्वती

प्रधान संपादक कमल मिश्रा ।

स्वामी जी ने माँ शबरी रामलीला के विषय में जानकारी देते हुये कहा कि परमार्थ निकेतन गंगा तट पर वनवासी और आदिवासी कलाकारों द्वारा प्रस्तुत माँ शबरी रामलीला का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह उनकी कलात्मक प्रतिभा और सांस्कृतिक धरोहर को मान्यता और सम्मान प्रदान करना है।

परमार्थ निकेतन कलाकारों को एक ऐसा मंच प्रदान करता है जहाँ पर वे अपनी कला और संस्कृति को दुनिया के सामने प्रस्तुत कर सकते हैं। साथ ही विविधता में एकता रूपी मानवता के उच्च आदर्शों को प्रस्तुत किया जाता है।

माँ शबरी रामलीला में कलाकार अपनी सांस्कृतिक धरोहर को मंच पर जीवंत करते हैं, जो न केवल मनोरंजन का स्रोत है, बल्कि समाज के लिये एक महत्वपूर्ण संदेश भी है। जिसमें भगवान राम और माँ शबरी के बीच के प्रेम, भक्ति और समर्पण का अद्वितीय वर्णन है।

माँ शबरी जिनकी प्रभु श्रीराम के प्रति अपार भक्ति और प्रेम था, इस रामलीला के माध्यम से यह संदेश दिया जा रहा है कि सच्चा प्रेम और भक्ति, जाति, धर्म और समुदाय की सीमाओं से परे है। यह समरसता और सद्भाव का अनूठा प्रयास है। माँ शबरी रामलीला का यह आयोजन एक उदाहरण प्रस्तुत करता है कि कैसे कला और संस्कृति के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन और एकता लाई जा सकती है। हम अपनी विविधताओं को स्वीकार कर एक सामंजस्यपूर्ण और सशक्त समाज का निर्माण कर सकते हैं।

मैनेजिंग ट्रस्टी सैस फाउंडेशन व अध्यक्ष, माँ शबरी रामलीला,  शक्ति बक्शी जी ने कहा कि परम पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के आशीर्वाद से हम प्रतिवर्ष परमार्थ निकेतन के दिव्य वातावरण में माँ शबरी रामलीला का यह आयोजन करते हैं जो वास्तव में एक ऐसी मिसाल पेश करता है, जिससे समाज में एकता, समरसता, और सद्भाव को बढ़ावा देने के साथ ही भारत की समृद्ध कला और संस्कृति की शक्ति से सभी का परिचय भी कराती है।

इस आयोजन हेतु मुख्य संरक्षक माँ शबरी रामलीला  वीरेन्द्र सचदेवा , सचिव चरणजीत मल्होत्रा, डा मुकेश कुमार ,  विश्व मोहन शर्मा ,  सुमित कुमार, आचार्य दीपक शर्मा महत्वपूर्ण योगदान प्रदान कर रहे हैं

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