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प्राचीन काल में घर से समान चुराकर की जाने वाली पार्टियां आज बनी समुदाय की परंपरा

प्रधान संपादक कमल मिश्रा

हरिद्वार । किसी भी समुदाय और धर्म में पुराने बूजर्गो के समय में उनके अनुसार किए गए कुछ कार्य कब उनके समुदाय में परंपरा का रूप ले लेती है इसका किसी को आभास भी नही होता। ऐसा ही कुछ गोरखाली समुदाय में देखने को मिल रहा है कहा जाता है की जब प्राचीन काल में बहुएं अपने घर से समान चुरा कर जंगल में पार्टी करती थी जिसे खाजा भात कहा जाता था वही आज चोरी से की जाने वाली पार्टियां आज उनके समुदाय में परंपरा का रूप ले चुकी है। हरिद्वार की गोरखाली समुदाय की महिलाएं अब इसे वन भोज के नाम से मानती है जिसमे लोक गीतों पर महिलाएं बच्चे जमकर थिरकती है।इसी परंपरा को मानने के लिए गोरखा समुदाय की सैकड़ों महिलाए और बच्चे गरीब दासी आश्रम निकट रेलवे स्टेशन में एकत्र हुए और वन भोज कार्यक्रम में प्रतिभाग किया।

इस अवसर पर समुदाय की अध्यक्ष पदमा पांडेय बताती है की पहले के जमाने में सास से बचते हुए बहुएं घर से चीजे चुरा कर लाती थी और जंगल में इक्ठा होकर जश्न मनाती थी। क्योंकि उस समय बहुएं को सास न तो भरपेट खाना देती थी और न ही उन्हें चावल देती थी। उन्होंने बताया की उसी परंपरा को आज वे नए अंदाज में मनाती है और जमकर नचाती है जश्न मनाती है जिसमे पुरुष उनका सहयोग करते है।
इस अवसर पर मुख्य रूप से तारा अर्याल, चम्पा देवी उपाध्याय, सपना खड़का, रेखा शर्मा, माया रेवली, कल्पना बोहरा, कल्पना ओझा, लक्ष्मी शर्मा, विष्णु देवी भट्टराई, भगवती ओझा, कोमल न्यूपाने, कमला सुबेदी, लक्ष्मी घिमिरे, भावना शर्मा, मधु पांडे, तनुजा पांडे, मंदिरा शर्मा, जूना खड़का, आराधना सुबेदी, खुशी खड़का, पदम प्रसाद सुबेदी, स्वामी हरिहरानंद, सुतीक्षण मुनि, रविदेव शास्त्री, नारायण शर्मा, पुष्प राज पांडे, लोकनाथ सुबेदी, रामप्रसाद शर्मा, सुशील पांडे, शमशेर बहादुर बम, सूर्य बिक्रम शाही, कमल खड़का, कृष्णा प्रसाद बस्याल, विजय शर्मा सुबेड़ी,

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