डॉ हरिनारायण जाेशी “अंजान”
हरिद्वार। उत्तराखण्ड, परिकल्पना, सपने और तुषारापात– आजादी के बाद कई पर्वतीय प्रदेशाें का गठन हुआ लेकिन उत्तराखण्ड परिक्षेत्र छाेड़ दिया गया। फलत: सत्तर के दशक में ही पृथक पर्वतीय प्रदेश की रूप रेखा, कारण और आन्दाेलनाें का दाैर शुरू हाे गया था। मुख्य मुख्य में राज्य का अस्तित्व, समग्र विकास, बेराेजगारी, पानी की रवानी और जवानी का राेजगार के लिए पलायन आदि प्रमुख मुद्दे थे। आन्दाेलन कभी धीमी ताे कभी तीब्र गति से चलते रहे। विश्वनाथ प्रताप सिंह के प्रधानमंत्रीत्वकाल में २७ प्रतिशत आरक्षण लागू हुअा। इसके विराेध में उत्तराखण्ड आन्दाेलन उग्र हाे गया क्याेंकि तब यहां पर अन्य पिछड़ी जातियाें की संख्या मात्र दाे से तीन प्रतिशत थी। दर्जनाें शहादतें हुई। प्रचण्ड आन्दाेलन के परिणाम स्वरूप राज्य अस्तित्व में आया।
निश्चित बड़ी बड़ी परिकल्पना और सपने राज्यवासियाें के रहे। राज्य में राेजगार की पहली समस्या थी। कई विशेषज्ञाें की राय में यह था कि लगभग तृतीय श्रेणी तक के पद या तत्कालीन ५५०० वेतनमान तक की भर्ती इस पर्वतीय प्रदेश के स्थानीय स्तर पर रहेगी जाे लाेकसेवा आयाेग की परिधि से बाहर हाेंगे।और शेष देश भर के लिए लाेक सेवा आयाेग की परिधि के भीतर हाेंगे। जैसा कि अन्य पर्वतीय प्रदेशाें की नियमावली में है। लेकिन आश्चर्य अभी ज्ञात हाेता है कि साधारण नैत्यित लिपिक का पद भी कहीं से भी भरा जा सकता है और कुछ विभागाें में ऐसी सेवा नियमावली तैयार हाे रही हैं, एक सांसद महाेदय बयान देते हैं कि उत्तराखण्ड में बंगालियाें काे आरक्षण दिया जाय।
सरकार विश्व विख्यात देव स्थलाें में शराब की फैक्ट्रीज खाेल रही है। ऐसी परिकल्पना न ताे राज्य शहीदाें ने की हाेगी, न राज्य आन्दाेलनकारियाें ने और नहीं आम जनमानस ने। क्या राज्य की समृध्दि और खुशहाली के लिए जाे सपने देखे गये उन पर ये कैसा तुषारापात ? बड़ी उम्मीदाें से डबल इंजन सरकार चुनी गई है। क्या सरकार चिंतन-मंथन और निर्णय करेगी या यही चलेगा जाे चल रहा है।