क्षण भर की सच्ची भक्ति भगवान तक पहुंचाने का मार्ग- महंत श्यामसुंदर दास महाराज
श्रीश्याम वैकुण्ठ धाम श्यामपुर में लगा बालाजी दरबार भक्तों का लगता ताता
हरिद्वार 17 मार्च 2025। श्यामपुर स्थित श्री श्याम वैकुण्ठ धाम में अलवर वाले बाबा की पावन कृपा स्वरूप बालाजी का दरबार लगा जिसमें अपनी मन्नतो की अर्जियां लेकर भक्तजन बालाजी के दरबार में उपस्थित हुए एक-एक कर सभी भक्तजनों की अर्जियां बालाजी के दरबार में बाची गई है परम पूज्य गुरुदेव 1008 श्री महंत श्यामसुंदर दास जी महाराज ने बालाजी के श्री चरणों से भक्तजनों को प्रसाद स्वरूप विभूति प्रदान की इन भक्तों में बहुत से ऐसे भक्त भी थे जो पिछले दरबारों में उपस्थित हुए थे जिनकी मन्नतें बाबा बालाजी भगवान ने पूर्ण की वे बालाजी के श्री चरणों में अपने भाव तथा प्रसाद अर्पित करने के उद्देश्य से दरबार में शामिल हुए।
इस अवसर पर बोलते हुए परम पूज्य गुरुदेव 1008 श्री महंत श्यामसुंदर दास जी महाराज ने कहा भक्ति किसी दिखावे या परपंच में नहीं होती भक्ति तो मनुष्य के भाव में उसके विचारों में होती है जिस प्रकार असुर कुल में पैदा होने के बाद भी बालक भक्त प्रहलाद के विचारों और संस्कारों में भक्ति रस बह रहा था उस पर लाख बंदीसे जुर्म होने के बाद भी उसके संस्कारों से उसके हृदय से उसके मस्तिष्क से भगवान हरि की भक्ति नहीं डोली और उसी की बुआ ने अग्नि में न जलने के वरदान का दुरुपयोग किया और भक्त प्रहलाद का अहित करने का प्रयास किया परिणाम क्या हुआ जिसके मन मस्तिष्क और हृदय में भगवान हरि की भक्ति बसी हुई थी अग्नि ने उसका कुछ नहीं बिगड़ा और जिस पर अग्नि में नजलने का वरदान था वह अग्नि में जलकर स्वाहा हो गई कहने का तात्पर्य यह है भक्ति करनी है तो मन और मस्तिष्क और हृदय से करो ईश्वर आपकी एक पुकार पर दौड़े चले आयेंगे पहले अपने मन मस्तिष्क को ईश्वर चरणों में तो लगाओ पहले बालक भक्त प्रहलाद जैसी भक्ति अपने हृदय में तो लाइये बहुत से लोग आजकल भजन कर रहे होते हैं माला फेर रहे होते हैं लेकिन ध्यान सांसारिक मोह माया की ओर होता है तो वह भक्ति आपको भवसागर पार कैसे ले जायेगी इस संसार में ग्रहस्त आश्रम संसार का सबसे बड़ा आश्रम है जो ग्रहस्त में रहते हुए अपने सभी जिम्मेदारियां का निर्वहन करते हुए कुछ पल का हरि भजन कर ले तो वह सैकड़ो वर्षों की तपस्या के सामान है किंतु जो सांसारिक मोह माया त्याग कर सन्यास आश्रमों में रह रहे हैं वैराग्य धारण किये हुए हैं उनके लिये तपस्या का विधान अति कठिन है और जो सन्यास धर्म में रहते हुए ध्यान मुद्रा में रहते हुए किसी और ध्यान लगाये हुए हैं संसार में उनसे बड़ा पापी भी कोई नहीं भक्ति ही इस संसार में कल्याण का मार्ग है और भक्ति ही इस संसार में मोक्ष का मार्ग है जो भक्त सच्चे हृदय से अपने मस्तिष्क पटल पर भगवान हरि का नाम भजते हैं उनकी तपस्या का तेज उनके भजन का प्रताप उनके मुख मण्डल पर एक तेज के रूप में स्वयं देखा जा सकता है किंतु जो धर्म को कर्म क्षेत्र से जोड़ते हुए व्यापार बना रहे हैं इसकी आड़ में दुकानदारी चला रहे हैं वह कदापि ठीक नहीं उनका अंत सदैव बड़ा बुरा होता है वह अपने कर्मों से ही सीधे काल को प्राप्त होते हैं और उनका अगला जन्म चांडाल के रूप में होता है और जो लोग बिना सत्कर्म यज्ञ अनुष्ठान पूजा तपस्या आराधना के दान का माल खाते हैं यह एक दिन उन्हें भरना पड़ता है दान का पैसा कई मुंह वाले रक्षा के सामान है जो बिना भक्ति करने वाले इंसान को एक दिन दांतों से नोच नोच कर खा जाता है किंतु जिसके मन में भक्ति बसी है जिसके मस्तिष्क में भगवान बसे हैं वह सतगुरु दान के पैसे का सदुपयोग करते हुए समाज के कल्याण में अच्छे कार्यों में खर्च करते हैं और सनातन का डंका विश्व भर में बजाते हैं जो सत्य है वही सनातन है और इस पृथ्वी पर सत्य के रूप में भगवान साक्षात हरि का नाम विद्यमान है साथ में जीवन और मृत्यु भी एक अटल सत्य है जो टल नहीं सकता जो अच्छे कुल में जन्म है ताउम्र बड़े-बड़े भोग भोक्ता है ऐश करता है किंतु जब उसका अंतिम समय आता है तो जिस मार्ग से एक फकीर एक गरीब जिसके पास कुछ नहीं होता जिस मार्ग से एक गरीब शमशान घाट जाता है इसी मार्ग से बड़े से बड़ा व्यक्ति बड़े से बड़ा पथ दर्शक बड़े से बड़ा मंत्री बड़े से बड़ा नेता बड़े से बड़ा अधिकारी बड़े से बड़ा साधक एक आम आदमी की तरह बांस की खापच्चियों से बनी अरथी पर ही लेट कर जाता है और शमशान घाट में उसे कोई खास विरायत्ता नहीं मिलती वही सभी के साथ लकड़ी के बीछोने पर लेटा कर अग्नि दान कर दिया जाता है कहने का मतलब यह है मुट्ठी बांधकर नंगा आया था और एक दिन हाथ पसारे नंगा ही चला जाना है तो यह मारामारी मोह माया के झमेले तेरा मेरा छीना झपटी झूठ तूफान इसका उसका दूसरों का हक मारना किस लियें जो कमाया था वह तो सब यहीं रह गया तन पर एक कपड़ा तक साथ नहीं गया गये तो आपके विचार और आपने जो भला बुरा कमाया था उसकी गठरी आपके सर पर सवार होगी वही गठरी जब खुलेगी तो आपके कर्मों का फल आपको यमराज देंगे इसलिये जागो अच्छे कार्य करो नहीं तो यह जन्म तो बिगाड़ ही लिया है परलोक भी खराब कर लोगे भगवान की भक्ति कभी मिथ्या नहीं जाती जो सूक्ष्म भक्ति करते हैं अगर उनकी आस्था सच्ची है तो उन्हें भी भगवान हरि का धाम प्राप्त हो सकता है ता उम्र पाप करने वाले असुर राक्षश अंतिम समय में भी अगर हरि हरि का सिमरन अंतिम समय में कर लेते हैं तो वह भी भवसागर पार हो जाते हैं इसका उदाहरण आप रावण कंस और शिशुपाल से ले सकते हैं भक्ति दो प्रकार की होती है एक तो अध्यात्मिक भक्ति है जो समस्त जगत वासी लोगों के लिये है एक विरोध आभासी भक्ति है जो भगवान का विरोध करने से प्राप्त होती है चाहे उन्होंने द्वेष भाव से ही भगवान का नाम लिया हो किंतु पल-पल लिया और भगवान के हाथ से मुक्ति पाई इसलिये उनका जीवन तैर कर भवसागर पार हो गया भगवान का नाम किसी भी स्वरूप में लिया जाये वह लेने वाले के लियें हर स्वरूप में कल्याणकारी है भक्ति मनुष्य के जन्मो जन्म साथ चलती है ।
इस अवसर पर बोलते हुए अनंत श्री विभूषित महामंडलेश्वर श्री 1008 डॉ राजेश्वर दास महाराज ने कहा जो भक्त बुद्धिमान होते हैं उन्हें पता है की भक्ति का मार्ग गुरु चरणों से होकर जाता है जो भक्त गुरु के चरणों को पड़कर गुरु के वचनों पर विश्वास कर चलते हैं उनका मानव जीवन सार्थक हो जाता है भक्ति मुकुट में चमकने वाले कीमती हीरे से भी अधिक मूल्यवान किंतु भक्ति का स्रोत भगवान ने गुरु को बनाया है आध्यात्मिक जगत में गुरु की महिमा बड़ी ही अपरम्पार क्योंकि कठोर तपस्या करने वाले सधक गुरु की प्रेरणा से अपने जीवन को मधुबन बना लेते हैं और भजन के तपोबल से इसे महका लेते हैं इसका उदाहरण आप माता राधा माता मीरा देवी और माता शबरी के जीवन से ले सकते हैं इन्होंने गुरु के मार्गदर्शन में भक्ति की माता रूकमणि भगवान श्री कृष्ण की धर्मपत्नी है किंतु कोई भी भक्त भगवान कृष्ण के भजन के समय माता रुक्मणी का नाम लेता नजर नहीं आता जो भी कहता है राधे श्याम सीता राम राधे श्याम सीता राम राधे श्याम सीताराम कहता है राधे को क्यों भजा जाता है उनकी भक्ति प्रबल थी मीरा को युगों बाद भी क्यों भगवान के श्रेष्ठ भक्तों में गिना जाता है उनकी भक्ति श्रेष्ठ थी और माता सीता का नाम भगवान राम के साथ क्यों लिया जाता है क्योंकि वह पतिव्रता स्त्री थी और अपने पति के पद चिन्हो पर चलने वाली स्त्री थी भगवान राम के मस्तिष्क में कब क्या चल रहा है उन्हें अच्छी तरीके से पढ़ना आता था इसीलिये उनके मन के भाव को और जनता के तनो से उसके पति भगवान राम का मन आहत न हो अकेले गर्भवती अवस्था में वन जाना स्वीकार किया भक्ति त्याग भी मांगती है और समर्पण भी मांगती है माता वैदेही जो भगवान राम की अर्धांगिनी है उन्हें भी इस संसार में परीक्षा से गुजरना पड़ता है भगवान जब जब इस धरा पर आते हैं तो उन्हें भी मानव स्वरूप में कई परीक्षाये देनी पड़ती है अगर प्रेरणा लेनी है तो राक्षसी ताड़का और राक्षसी पूतना से भी ली जा सकती है क्योंकि जब जागे तभी सवेरा कहने का तात्पर्य यह है कि अगर अंतिम समय में आपको भक्ति मार्ग दिख जाता है और कुछ क्षण का ही सही लेकिन उन्होंने उन्हें हृदय की गहराइयों से भगवान का नाम पुकारा और स्वर्ग से उन्हें विमान लेने आया ऐसी बात नहीं है अपने जीवन को आप किसी भी उम्र में किसी भी दिशा में ढाल सकते हैं भक्ति की कोई उम्र या सीमा नहीं होती आप कम आयु में भी भक्त प्रहलाद की तरह भक्ति मार्ग प्राप्त कर सकते हैं इस अवसर पर बोलते हुए महंत ज्ञानानन्द महाराज ने कहा राम नाम इस जीवन का आधार है राम नाम की महिमा समुद्र में तैरते पत्थरों से लगा सकते हैं जब राम नाम लिखने से पत्थर तैर सकते हैं तो राम नाम की गाथा गाने से यह जीवन तैर कर भवसागर पार हो सकता है।
इस अवसर पर बोलते हुए महंत सतीश गिरी महाराज ने कहा भगवान भक्त की आस्था देखते हैं अगर आपकी भक्ति और आस्था सच्ची है तो आपको कदम कदम पर भगवान का बोध होता भक्ति भगवान तक पहुंचाने का सेतु है मनुष्य के मन में बसा कल्याण का एक भाव है भक्ति ही भगवान को भक्ति के पास जाने हेतु पुकार लगाती है और सच्चे मन से की गई भक्ति सीधे ईश्वर तक पहुंचती है जिसके मन में भक्ति बसी हो उसका सांसारिक मोह माया से कोई खासा लेना-देना नहीं होता वह तो हमेशा भगवान के चरणों में खोया रहता है और अपनी भक्ति की उधेड़बुन में भगवान को खोजता रहता है और एक दिन उसकी यह खोज भगवान अवश्य पूर्ण करते हैं अगर आवश्यकता है तो सच्चे भाव की सच्ची भक्ति की सच्ची लगन की भगवान आपसे कुछ ही कदम की दूरी पर होते हैं और पलक झपकते ही आपके समीप आ जाते हैं जरा सच्ची आस्था से पुकारो तो सही