साधनाकाल में संतों के सत्संग का विशेष महत्त्व- डॉ पण्ड्या
प्रधान संपादक कमल मिश्रा
हरिद्वार 11 अप्रैल।
अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि साधनाकाल में संतों के सत्संग का विशेष महत्त्व है। सत्संग से भक्ति का जागरण होता है। सच्चे संतों का सत्संग पारस समान है, वे स्वयं कष्ट सहकर दूसरों की समस्याओं को दूर करने का प्रयत्न करते हैं।
प्रसिद्ध आध्यात्मिक चिंतक डॉ. पण्ड्या गायत्री तीर्थ शांतिकुंज के मुख्य सभागार में श्रीरामचरित मानस में माता शबरी की योगसाधना विषय पर भक्तिभाव में डूबे हजारों साधकों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि सच्चे संत का चरित्र व व्यवहार उत्तम होता है। वे अपने निकट आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु को जीवन, चरित्र व व्यवहार निर्माण का उपदेश देते हैं। वे सर्वत्र समान दृष्टि रखते हैं। गायत्री साधना के साथ संतों का सत्संग जीवन को उत्कर्ष की ओर बढ़ाने में सहायक है। मानस मर्मज्ञ डॉ पण्ड्या ने कहा कि गायत्री महामंत्र के जप से सद्बुद्धि आती है और सत्संग से सत्कर्म करने की प्रेरणा जागृत होती है। उन्होंने कहा कि माता शबरी ने अपने सद्गुरु के बताये नियमों का पालन करते हुए कई दशकों तक एकनिष्ठ होकर प्रभु की साधना की। इस अवसर पर श्रीरामचरित मानस के विभिन्न दोहों, चौपाइयों के माध्यम से माता शबरी के विविध प्रसंगों का उल्लेख किया।
इससे पूर्व संगीत विभाग के कलाकारों ने साधकों के साधनात्मक मनोभूमि को ऊँचा उठाने वाला प्रेरक गीत राम और श्रीराम एक हैं, दुनिया जान न पाई प्रस्तुत किया। इस अवसर पर देश विदेश से आये हजारों साधकों के अलावा शांतिकुंज के अंतेवासी कार्यकर्ता भाई बहिन उपस्थित रहे।