परमार्थ निकेतन में धूमधाम से मनायी राधाष्टमी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत के जन्मदिवस के अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने अनेकानेक मंगलकामनायें दी
कमल मिश्रा
राधाष्टमी के पावन अवसर पर प्रकृति के प्रति समर्पित होकर जीवन जीने का संकल्प कराया
श्री राधा जी पवित्र प्रेम और समर्पण का प्रतीक-स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश, 11 सितम्बर। परमार्थ निकेतन में स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और साध्वी भगवती सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों और भक्तों ने धूमधाम से श्री राधा जी का प्राकट्य दिवस मनाया। भाद्रपद माह की शुल्क पक्ष की अष्टमी को राधाष्टमी मनायी जाती है। इस दिन राधा जी का प्राकट्य हुआ था। वेदों में राधा जी का गुणगान कृष्ण वल्लभा के नाम से किया गया है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्री राधा जी के जन्म से जुड़ी कथा मिलती है। साथ ही अनेक धार्मिक गं्रथों में और पौराणिक कथाओं में राधा जी के जन्म का उल्लेख मिलता है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती महाराज ने कहा कि श्री राधा जी पवित्र प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। उन्होने अपने आप को मन, वचन, कर्म और बुद्धि से पूर्णरूपेण अपने ईष्ट को निःस्वार्थ भाव से सौंप दिया था जिससे उनका जीवन श्री कृष्ण मय हो गया था। राधा जी ने बिना किसी तर्क और संदेह के पूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ स्वयं को श्री कृष्ण के समर्पित कर दिया था उसी का परिणाम है कि भगवान श्री के नाम के पहले श्री राधा जी का नाम लिया जाता है। उन्होने कहा कि समर्पण भाव को जागृत करने के लिये श्रद्धा का होना नितांत आवश्यक है। जहां श्रद्धा होगी प्रेम अपने आप आ जाता है।
स्वामी जी ने कहा कि आज के समय में परिवारों में समर्पण और विश्वास की कमी के कारण परिवार बिखरते जा रहे है। उन्होने कहा कि किसी भी रिश्तों में समर्पण का होना आवश्यक है क्योंकि समर्पण मनुष्य को पूर्णता की ओर ले जाता है। श्री राधा जी का भगवान कृष्ण के प्रति समर्पण ही था कि वह श्री कृष्णमय हो गयी। बालक नरेन्द्र का गुरू रामकृष्ण परमहंस के प्रति समर्पण ही था कि वे विवेकानन्द बन गये। उन्होने कहा कि समर्पण चाहे अपने ईष्ट के प्रति हो, अपने रिश्तों के प्रति हो; अपने कार्य के प्रति हो या फिर अपनी जवाबदारियों के प्रति हो परन्तु स्वभाव में समर्पण होना जरूरी है क्योकि समर्पण में ही पूर्णता है। मुझे तो लगता है वर्तमान समय में हम सभी का समर्पण अपनी प्रकृति के प्रति; अपने जल स्रोतों के प्रति; अपनी पृथ्वी के प्रति होना चाहिये तभी भविष्य में आने वाली भावी पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित रह सकता है।
आज राधाष्टमी के पावन अवसर पर स्वामी जी ने सभी को प्रकृति के प्रति समर्पित होकर जीवन जीने का संकल्प कराया।