स्वामी चिदानन्द सरस्वती से आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक रविशंकर की भेंटवार्ता के दौरान रूद्राक्ष का पौधा देकर और इलायची की माला पहनाकर किया स्वागत
दोनों पूज्य संतों ने प्रकृति व संस्कृति के संरक्षण पर की विशेष चर्चा
ऋषिकेश, 29 अप्रैल। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती और आर्ट आफ लिविंग के संस्थापक श्रीरविशंकर की आज दिव्य भेंटवार्ता हुई। दोनों पूज्य संतों ने आध्यात्मिक चर्चाओं के दौरान उत्तराखंड के प्रदूषण मुक्त विकास, पर्यटन के साथ तीर्थाटन और गंगा जी सहित अन्य सहायक नदियों के प्रदूषण मुक्त निर्मल प्रवाह को बनाये रखने हेतु विशेष चर्चा की।
स्वामी जी ने श्री को हिमालय की हरित भेंट रूद्राक्ष का पौधा भेंट कर आदियोगी की धरती उत्तराखंड में उनका अभिनन्दन करते हुये अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी में आयोजित ‘विश्व संस्कृति महोत्सव’ के विषय में चर्चा की। आर्ट ऑफ लिविंग के इस भव्य कार्यक्रम में कई देशों के अनेक कलाकारों, कई राष्ट्राध्यक्ष और विचारकों ने सहभाग किया था। स्वामी जी ने श्रीश्री जी को उनके मानवतावादी कार्यों व ध्यान के माध्यम से अनेकों लोगों के जीवन में हुये विलक्षण परिवर्तन हेतु भी धन्यवाद दिया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि भारतीय संस्कृति विश्व की अद्वितीय संस्कृतियों में से एक है। हमारा राष्ट्र अपने सांस्कृतिक इतिहास के लिये जाना जाता है। अध्यात्म, कला और सांस्कृतिक विरासत के धागों को समझना, संरक्षित करना और आत्मसात करने हेतु प्रेरित करना अत्यंत आवश्यक है ताकि भावी पीढ़ियों के लिए इस समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित कर आध्यात्मिक, सांस्कृतिक जीवंतता को बनाये रखा जा सके। वर्तमान में सबसे बड़ी आवश्यकता युवाओं को राष्ट्र निर्माण के लिये जागरूक करना और सही दिशा में आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करना है।
स्वामी जी ने कहा कि भारत, विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है जिसमें बहुरंगी विविधता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है। इसके साथ ही इसने अपने-आप को बदलते समय के साथ ढ़ाला भी है। वर्तमान समय में भारत बहुआयामी सामाजिक और आर्थिक प्रगति की ओर निरंतर अबाध गति से बढ़ रहा है और इसमें युवाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है।
श्रीरविशंकर ने कहा कि उत्तराखंड में दिव्यता व भव्यता, समृद्ध जल और हरियाली तथा माँ गंगा और हिमालय का अद्भुत संगम है। उसी प्रकार स्वामी जी के जीवन में भी अध्यात्म और प्रकृति का विलक्षण समन्वय है। उनसे जब भी भेंट होती हैं, वे शिव व हिमालय की विशालता और विराट व्यक्तित्व का प्रतीक दिव्य रूद्राक्ष का पौधा भेंट करते हैं। यह वास्तव में अध्यात्म व प्रकृति के दिव्य संगम का प्रतीक है। मेरे लिये तो यह प्रकृति व संस्कृति दोनों के संरक्षण का संदेश देता है।
स्वामी जी ने श्री को विश्व विख्यात परमार्थ निकेतन गंगा आरती में सहभाग हेतु आमंत्रित किया। दोनों पूज्य संतों ने आगामी कुम्भ मेला को सिंगल यूज प्लास्टिक मुक्त करने हेतु धर्मगुरूओं व पूज्य संतों की भूमिका पर भी चिंतन-मंथन किया। उन्होंने कहा कि इसकी शुरूआत हमें कथाओं, भंडारों और आध्यात्मिक कायक्रमों से करनी होगी तभी हम अपनी जीवनदायिनी नदियों और प्रदूषित हो रही मृदा को सुरक्षित रख सकते हैं।