फूल तो खिलते है हमेशा तितलियों के लिए
डॉ० हरिनारायण जोशी अंजान
यह फूल खिलते क्यों हैं। कौन खिलाता है इन्हें। कौन महकाता है। कहां से इनमें मकरंद भरती है और क्यों भरी जाती है। कहां से इनमें महक उठती है। कहां से ये इतने रंग चुराते हैं। मैं बचपन से सोचता था और कविता लिखता था कि यह मंदिर में चढ़ाने के लिए हैं, भगवान के चरणों में अर्पित करने के लिए हैं। अर्थी, डोली को सजाने के लिए हैं, प्रेमिका के जूड़े में गुंथने के लिए हैं। सफेद कोट पर टांकने के लिए हैं, गुलदस्तों में सजाने के लिए हैं, एक दूसरे को भेंट करने के लिए हैं। या 14 फरवरी किसी विशेष विदेशी दिन के लिए हैं। रोज डे मनाने के लिए हैं, किसी के स्वागत के लिए हैं, या फिर तोरण द्वार सजाने के लिए हैं। अब तो आलम यह है होली भी फूलों के चलन में आ गई है और अनेक अवसरों पर पुष्प वर्षा भी हो रही है। फूलों का आमतौर पर यही उपयोग किया जाता रहा।
हमने भी मुद्दत से अपने दामन में फूलों के बाग उगाये हुए हैं कि गूंगी तस्वीरें बोलने लगेंगी तो उसको समर्पित करेंगे। इन सूखते और बासी होते फूलों को रोज पानी छिड़क छिड़क कर ताजा भी करते रहते हैं। फिर माखनलाल चतुर्वेदी की भी एक बार कविता पढ़ी-
मुझे तोड़ लेना बनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक। मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जावें वीर अनेक।
यह फूल की सबसे अच्छी उपयोगिता लगी की हां इन फूलों की उत्पत्ति यहां के लिए है। इन फूलों को धरती पानी हवा सूर्य और आकाश मिलकर के खिलाते हैं लेकिन अब पता लगा कि ये तो तितलियों के लिए खिलते हैं। ये फूल भंवरों के मकरंद पान के लिए महकते हैं। भंवरों में गुंजन का नाद यही फूल भरते हैं। और फिर मधुमक्खियों का नाम मधु तो इन्हीं फूलों की मकरंद को चूसने से मिला। ये फूल देव और अप्सराओं के विचरण के लिए भी तो खिलते हैं। इन्हीं के लिए तो उगती हैं फूलों की घटियां।
यह फूल तोड़ने के लिए नहीं बल्कि देखने और आत्ममुग्ध होने के लिए हैं। सचमुच प्रकृति तुम कितनी धन्य हो। तुम्हारे इतने से उद्देश्य में हम कितना कितना और कितना उपयोग कर देते हैं तुम्हारी इन कृतियों का।तुम्हारी एक बूंद सागर हो जाती है।और हमारी भावनाओं को भी सागर जैसी विशाल बना देती है। तुम धन्य हो।