मनुष्य का काम वासना से बचपाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है योग साधना के वसीभूत संत नहीं होते इसके वशीभूत

हरिद्वार 4 अप्रैल 2025 (वरिष्ठ पत्रकार ठाकुर मनोज मनोजानन्द)।
इस सृष्टि की उत्पत्ति काम के माध्यम से हुई है इसलिये यह मनुष्य कामवासना के वशीभूत रहता है मां कामाख्या इस पृथ्वी लोक पर साक्षात स्त्री प्रतिरूप में घर-घर गली-गली विद्यमान है उन्हीं से इस सृष्टि की उत्पत्ति का संचार जारी है शिव और शक्ति के मिलन से यह चराचर सृष्टि सुचारू रूप से संचालित हो रही है इसीलिये नवरात्रा महापर्व पर गली गली घर घर माता की पूजा और आराधना होती है क्योंकि माता स्वरूपिणी मां कामाख्या मां दुर्गा महाकाली सहित माता के समस्त स्वरूपों की आराधना भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती जो मां कामाख्या स्वरूप की पूजा वंदना आराधना से प्रसन्न करता है उसके घर में संपूर्ण परिवार के साथ-साथ सुख शांति समृद्धि की वर्षा होती है इसीलिये स्त्री हर स्वरूप में पूजनीय तथा वंदनीय है क्योंकि वह साक्षात माता कामाख्या महाकाली का स्वरूप है जिस घर परिवार में स्त्री का सम्मान होता है वह सदैव संपन्नता से परिपूर्ण होता है और साक्षात वहां ईश्वर का वास होता है इसीलिये मनुष्य कामवासना के वशीभूत होता है क्योंकि उसकी परवर्ती उसी के आधीन है जिस मार्ग से आया ताउम्र उसी की खोज में लगा रहता है वैराग्य धारण संत महापुरुष योग और तपस्या के बल पर काम से बच सकते हैं उनका तपोबल उनकी मनोवृत्ति ईश्वर प्राप्ति की ओर कर देता है