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श्रीमद् भागवत कथा में साक्षात भगवान ब्रह्मा विष्णु महेश के साथ सभी देवों का वास है, इस पावन कथा में भक्ति के साथ-साथ कल्याण भी बसता है- महामण्डलेश्वर पुनीत गिरी महाराज

हरिद्वार 5 अप्रैल 2025 (वरिष्ठ पत्रकार ठाकुर मनोजानन्द)।

भुपतवाला स्थित श्री कबीर आश्रम में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में अपने श्री मुख से उद्गार व्यक्त करते हुए कथा व्यास महामंडलेश्वर परम पूज्य श्री पुनीत गिरी महाराज ने कहा मां गंगा की पावन नगरी चारों धाम के द्वार हरिद्वार में पावन कथा श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण करने मात्र से मनुष्य के जन्मों जन्म के पुण्यों का उदय हो जाता है इस अवसर पर बोलते हुए महामंडलेश्वर परम पूज्य श्री कपिल मुनि महाराज ने कहा श्रीमद् भागवत कथा साक्षात इस सृष्टि के रचयिता भगवान श्री हरि द्वारा ब्रह्मा जी को सुनायी गई पावन कथा है जिसके सुनने मात्र से मनुष्य के भाग्य का उदय हो जाता है और उसके पूर्वजों को सद्गति मिलती है इस पावन कथा में संपूर्ण सृष्टि का सार व्याप्त है जैसे जब कोई योगी वैराग्य के वशीभूत हो जाता है तो उसे पता चल जाता है की राम ही सूरत राम ही मूरत राम धरती और आसमान रे राम ही पीड़ा राम ही मरहम राम करे उपचार रे यह संपूर्ण ब्रह्मांण्ड भगवान श्री हरि के द्वारा रचित माया का भाग है जो समझ गया वह तर गया और जो न समझा वह अज्ञानता के भवर में ताउम्र फसा रहता है भगवान को प्राप्त करने के लियें इस मन में वैराग्य धारण करना पड़ता है इस स्थूल शरीर को शून्य में विलीन करते हुए जड़ बनाकर चैतन्य करना पड़ता है जब जड़ से चैतन्य की उत्पत्ति होती है तो उस से प्रकट होने वाले भाव और दिव्यता सीधे भगवान हरि के चरणों तक पहुंचती है और आपको ज्ञान रूपी दिव्य चक्षु प्राप्त हो जाते हैं और आपके सामने इस सृष्टि के रचयिता भगवान श्री हरि अपने मूल स्वरूप में प्रकट हो जाते हैं लेकिन जिसके मन में भक्ति नहीं जिसके मन में वैराग्य नहीं जिसके मन में हरि मिलन की आस नहीं उसे कहां से भगवान मिलेंगे भगवान किसी चढ़ावे या वस्तु के भूखे नहीं भगवान तो सिर्फ भक्ति के भक्ति भाव के भूखे हैं इस कलयुग में ईश्वर को प्राप्त करने के लिये अन्य युगों की तरह करोड़ों वर्ष तपस्या करने की आवश्यकता नहीं अगर आपके अंदर भक्ति भाव सच्चा है भगवान के प्रति श्रद्धा आस्था सच्ची है तो सत्संग के माध्यम से गुरुजनों की संगत के माध्यम से सूक्ष्म आराधना से भी ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है इस अवसर पर बोलते हुए महंत दुर्गादास महाराज ने कहा जिसमें सत्य और भक्ति का वास है जिसके हृदय में भगवान की भक्ति समायी हुई है उसे भगवान को कहीं ढूंढने की आवश्यकता नहीं भगवान तो स्वयं उसके हृदय में बैठे हुए हैं जिसके हृदय में भक्ति बसी हुई है उसका यह मानव शरीर और हृदय ही मंदिर है क्योंकि उसके अंदर पावनता है और हरि मिलन की आस है जिस दिन वह अपने हृदय में बैठे भगवान को पहचान लेगा भगवान उसके सामने स्वयं प्रकट हो जायेगे भगवान किसी भी वस्तु का लोभ नहीं करते किसी चढ़ावे कि आस नहीं रखते वे तो भक्ति और प्रेम के भूखे हैं सच्चे मन से लगाई गयी पुकार सीधे भगवान हरि तक पहुंचती है अगर आस्था और लगन और भक्ति भाव सच्चा है तो भगवान पल भर के सिमरन से प्रसन्न हो जाते हैं अगर मन में कोई लालसा है कुछ पाने की इच्छा है तो करोड़ों साल की तपस्या भी कोई मायने नहीं रखती इस अवसर पर श्री कृष्णा मुनि महाराज कोतवाल कमल मुनि महाराज सहित इस अवसर पर अनेको संत उपस्थित थे सभी संतो की यजमान श्रीमती शैलजा जैन श्रीमती प्रज्ञा जैन ने आरती कर पूजा वंदना की

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