प्रधान संपादक कमल मिश्रा
हरिद्वार । हरि की नगरी हरिद्वार में वैसे तो कई तीर्थ स्थान और मंदिर है जहां ईश्वरीय कृपा विद्यमान है । उनमें से ही एक ऐसे मंदिर की हम बात कर रहे है जो कि बिल्बकेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित मां गौरी कुंड की।
गौरी कुंड मंदिर के बारे में जानकारी देते हुए मंदिर के पुजारी अनिल पुरी महाराज ने बताया कि बिल्बकेश्वर महादेव मंदिर हरिद्वार बाईपास रोड स्थित एक सिद्ध पीठ महादेव का मंदिर है वहीं मंदिर परिसर में थोड़ा सा आगे मां गौरी की तपस्थली है। बताया जाता है कि माता पार्वती के सती होने के उपरांत जब माता ने मां गौरी का रूप धारण किया।
मां गौरी द्वारा भगवान शिव को पाने हेतु जगह जगह तपस्या करने के उपरांत जब उन्हें कहीं पर भी सफलता नहीं मिली। फिर उनको एक महात्मा ने बताया गया की सर्वप्रथम आप किसी को अपने गुरु बनाओ। फिर मां गौरी ने नारद जी को अपना गुरु बनाया फिर उन्होंने बताया कि विल्व पर्वत पर जाकर तपस्या करो। यह सुनने के उपरांत मां गौरी ने इस स्थान पर भगवान शंकर जी को पति रूप में पाने हेतु तपस्या सुरू कर दी लेकिन उस वक्त यहां पर घनघोर जंगल था और न ही यहां पर कोई कुंड था। साथ ही स्नान हेतु पानी तक की भी सुविधा नहीं थी फिर ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से उक्त स्थान पर जल डाला उस जल को मां गौरी ने अपनी चूड़ी को धरती पर रखकर उसमें स्वीकार किया उसी चूड़ी ने कुंड का स्वरूप ले लिया। कहा जाता है कि जब मां गौरी जी ने एक हजार वर्ष यहां पर तपस्या की। शंकर भगवान जी ने तब भी उनको अपने दर्शन नही दिए तब मां गौरी नाराज होकर बिल्केश्वर मंदिर चली गई। फिर वहां पर मां गौरी ने लगभग 3000 वर्ष तपस्या की ओर शंकर भगवान जी को पाया।
पुजारी अनिल पुरी महाराज ने बताया कि गौरी कुंड के समीप वरदेशवेर महादेव भी स्थापित है। जिनके संबंध में मान्यता है कि किसी भी स्त्री या पुरुष का विवाह न हो रहा हो, किसी की संतान उत्पत्ति न हो रही हो और साथ ही शरीर में कोई रोग हो कहा जाता है की इस कुंड के जल से पांच रविवार स्नान करने से फल मिलता है।