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आयुर्वेद एक चिकित्सा विज्ञान ही नही अपितु स्वस्थ जीवन निर्वाह की भी एक सक्षम सफल कला है – वै. शि. धीरज शर्मा 

 

हरिद्वार। आयुर्वेद शास्त्र सिद्धांत प्रवक्ता वै. शि. धीरज शर्मा सुपुत्र प. सुभाष शर्मा ने आयुर्वेद शास्त्र को आधार मानकर यह बताया है कि आयुर्वेद रोगों का तो उन्मूलन करता ही है साथ ही में हमे स्वस्थ एवम निरोग जीवन जीने की भी वास्तविक कला प्रदान करता है क्योंकि आयुर्वेद का उद्देश्य भी यही है “स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं आतुरस्य विकार प्रशमनश्चय।” स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य को बनाए रखना और रोगी व्यक्ति के रोग को ठीक करना आयुर्वेद का मुख्य उद्देश्य है।

अर्थात जो रोगी है उसे ठीक किया जाए और जो स्वस्थ व्यक्ति है उसे स्वस्थ कैसे रखा जाए मूलतः आयुर्वेद विज्ञान इसी सिद्धांत पर कार्य करता है आयुर्वेद विज्ञान में बताया गया है कि स्वस्थ जीवन निर्वाह में आहार- विहार महत्वपूर्ण योगदान होता है हम यह भी कह सकते है कि आहार- विहार दो ऐसे मुख्य बिंदु जो कि मानव के स्वास्थ्य का निर्धारण करते है क्योंकि आयुर्वेद शास्त्र में बताया गया है कि आहार- विहार से ही हमारे शरीर मे दोष ( वात पित्त कफ ) प्रकुपित एवम साम्य होते है आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान में दिनचर्या एवम ऋतुचर्या का भी उल्लेख किया गया है और ऋतुअनुसार आहार- विहार का वर्णन किया गया है जैसे कि हमे किस ऋतु में किस प्रकार का भोजन करना चाहिए और हमे किस प्रकार के वस्त्रादि धारण करने करना चाहिए तथा उस ऋतु अनुसार हमे कौनसा व्यायाम करना चाहिए और आयुर्वेद हमे यह भी बताता है कि किस समय हमें क्या खाना चाहिए जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद हितकर साबित होता है आयुर्वेद शास्त्र में मुख्यता आहार- विहार पर बल दिया गया है क्योंकि ये दो ही बिंदु ऐसे है यदि विषम रूप में इनका सेवन किया जाए तो ये हमारे स्वास्थ्य का ह्रास करते है और यदि इनको सम्यक रूप से सेवन किया जाए तो स्वास्थ्य का वर्धन करते है आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान में पथ्य-अपथ्य का भी वर्णन किया गया है पथ्य वह कारक होते है जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए हितकारी होते है जबकि अपथ्य हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते है हमे आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान में उलेखित पथ्यो का सेवन करना चाहिए और अपथ्यो का हमे सर्वदा त्याग करना चाहिए और सम्यक आहार -विहार का सेवन करके हम स्वस्थमय एवम निरोगमय जीवन यापन कर सकते है

 

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