हरिद्वार और हरिद्वार में बहने वाली मां गंगा दोनो ही विश्व मानस पटल पर अध्यात्म का केंद्र बिंदु
गंगा मां केवल आध्यात्मिकता की संवाहिका ही नहीं अपितु भाैतिक समृध्दि की भी प्रत्यक्ष देवी है - डॉ० हरिनारायण जाेशी अंजान
हरिद्वार। हरिद्वार की विश्व प्रसिद्धि धार्मिकता और आध्यात्मिकता के कारण है। किसी के भी मानस पटल पर हरिद्वार नाम आते ही गंगा, उसकी धारायें, मंदिर, मंदिराें में गूंजता संगीत, साधु-संत, आश्रम, पहाड़, जंगल, बाग-बगीचे, पुष्प, हरियाली, स्वच्छता, शांति और एक अलाैकिक पर्यावरणिक वातावरण की छवि मस्तिष्क में उभर आती है जिससे चैन, सकून और शांति का आभाष हाेता है। हरिद्वार उत्तराखण्ड का ही नहीं सम्पूर्ण भारतीयता का आध्यात्मिक केन्द्र बिन्दु और गाैरव है। पाण्डव भी जब स्वर्गाराेहण के लिए आये ताे हरिद्वार ही आये क्याेंकि माना जाता रहा कि हरिद्वार के ऊपर की भूमि स्वर्ग है और हरिद्वार उसका द्वार।
गंगाजी केवल आध्यात्मिकता की संवाहिका ही नहीं अपितु भाैतिक समृध्दि की भी प्रत्यक्ष देवी हैं। लेकिन हमारी भावना भी इसकी उदारता काे समेटने के लिए जिम्मेदार है कि हम किस रूप में उसकी कृपा काे ग्रहण करते हैं। अन्यथा यूं भी कहा जाता है कि गंगा की रेती न लेती न देती। उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद जमीनाें के भाव ने आसमान छुए। बाग-बगीचे कटने लगे और कंकरीट के जंगल उगने लगे। पर्यावरण नष्ट हाेने लगा। हरिद्वार और देश भर के जिन संत महापुरूषाें के भराेषे हरिद्वार का अलाैकिक स्वरूप था। सम्भवतया उन्हाेने भी बड़ा प्रयास नहीं किया। मंदिराें में घंटे-घडियाल-डमरू ताे बजते हैं और आरती-भजन भी खूब हाेते हैं लेकिन सब कुछ कृत्रिम। फिल्मी गानाें की धुन पर भजनाें की पैराेड़ियां चलती हैं और ढाेल-डमरू भी विद्युत चालित बजते हैं। न स-स्वर गायन, न स्वयं वादन। रटा-रटाया सीडी प्लेयर। भावाव्यक्ति की पूर्ण अनुपस्थिति। औपचारिकता जैसी। वही उपभोक्तावाद और भौतिक चकाचौंध की जकड़ में हरिद्वार जैसे नाम का नगर।
सामान्य घराें में पांच-छ: साल तक आमताैर पर रंगाई-पुताई नहीं हाेती लेकिन हरिद्वार कदाचित पहला नगर है जहां लगभग हर पांचवें साल बड़ा बजट इसकी सुसज्जा के लिए अवमुक्त हाेता है। क्याेंकि हर छ:साल में कुम्भ की तिथि निर्धारित हाेती है। फिर भी हरिद्वार अभी तक भाैतिक विकास नगर भी यहां से लगभग ढाई साै किमी की दूरी पर चण्डीगढ जैसी शक्ल भी नहीं ले पाया यहां तक कि अपने ही उपनगर वीएचईएल एरिया के अनुरूप भी नहीं हाे सका। निर्माण कार्याें विशेषकर भूमिगत कार्याें में सम्बन्धित विभागाें के मध्य उचित तारतम्य न हाेने और संयाेजन के अभाव में पहला विभाग कार्य करेगा ताे दूसरे सम्बन्धित विभाग द्वारा सड़क बनाने का कार्य शुरू हाे जायेगा। तब तक तीसरा विभाग खुदाई नये सिरे से प्रारम्भ करेगा। इससे यह भी सही पता नहीं चल पाता कि भूमिगत किस ओर और कितनी गहराई में पूर्व में काैन सी लाइन बिछी है। यह क्रम चलता ही रहता है। इस प्रकार याेजनायें भी अधिक खर्चीली हाे जाती हैं और यदि मानकाें का भी अभाव रहा ताे फिर समस्या दर समस्या का सतत उत्पन्न हाेना स्वाभाविक है।
हरिद्वार की परिकल्पना में यह भी है कि यह नगर अपनी छवि और छटा के अनुरूप संक्रमित राेगाें से मुक्त हाे। नहीं ताे कम से कम सुरक्षित ताे हाे। हरिद्वार का छाेटा या बड़ा जनप्रतिनिधि हाेना ही नहीं अपितु सामान्य नागरिक हाेना भी बड़े साैभाग्य और गरिमा की बात है। ऐसा कहा जाता है कि हरिद्वार जैसा तीर्थ अधिवास के लिए बहुत पुण्यफलाें के कारण प्राप्त हाेता है। इसलिए सभी उत्तरदायी संस्थाओं, सामाजिक समूहाें, व्यक्तियाें और आम नागरिकाें काे तक इसके स्वरूप काे संवारने के लिए वास्तविक श्रद्धाभाव से प्रयत्न करना चाहिए।