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एक साधक संत बनने के लिये मन से अपना पराया इसका उसका त्यागने के साथ-साथ भगवान को मन मस्तिष्क में धारण करना पड़ता है- तेजसानन्द गिरी

हरिद्वार (वरिष्ठ पत्रकार ठाकुर मनोज मनोजानन्द) ।

श्री भोलानंद सन्यास आश्रम भोलागिरी रोड हरिद्वार में विशाल संत भंडारे का आयोजन किया गया इस अवसर पर भक्तजनों के बीच ज्ञान की वर्षा करते हुए महामंडलेश्वर स्वामी तेजसानन्द गिरि जी महाराज ने कहा गुरु मिलाते हैं ईश्वर से गुरु ही देते ज्ञान भवसागर की नैया के गुरु ही तारणहार सतगुरु इस पृथ्वी लोक पर साक्षात ज्ञान का एक विशाल सूर्य होते हैं जिनके ज्ञान रूपी सरोवर में स्नान करने के बाद भक्तों का जीवन धन्य तथा कृतार्थ हो जाता है।

मनुष्य को एक संत साधक होने के लिए मन के सभी विकारों को त्यागना पड़ता है भला बुरा अपना पराया इसका उसका तेरा मेरा जिसके मन में संत होने के बाद भी बस हो वह एक सच्चा साधक नहीं हो सकता सच्चा साधक बनने के लिए मन को एकाग्र करना पड़ता है और इच्छाओं आवश्यकताओं पर अंकुश लगाना पड़ता है तब मन में सच्चा वैराग्य उत्पन्न होता है इस अवसर पर हरिद्वार के अनेको मठ मंदिरों आश्रमों से आये संत महापुरुषों ने भंडारे में भोजन प्रसाद ग्रहण किया इस अवसर पर सचिव  राजगिरी जी महाराज महंत शुक्र गिरी महाराज स्वामी कमलेशानन्द महाराज महंत शांति प्रकाश महाराज सहित भारी संख्या में संत महापुरुष उपस्थित थे

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