परम विद्वान एवं विनम्रता की मूर्ति माधवप्रिय दास स्वामी के श्रीमुख से श्रीमद् भागवत कथा का समापन
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कथा के समापन अवसर पर ‘‘स्वच्छता ही सेवा’’ का दिया संदेेश
प्रधान संपादक कमल मिश्रा
सेवा, सबसे उच्चतम स्वरूप की पूजा है,” जब हम दूसरों की सेवा करते हैं अर्थात् हम भगवान की सेवा कर रहे होते हैं। स्वच्छता एक बहुत सरल परन्तु शक्तिशाली माध्यम है सेवा का, सेवा के माध्यम से सम्पूर्ण मानवता के प्रति प्रेम और करुणा व्यक्त कर सकते है।
ऋषिकेश, 13 सितंबर। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने स्वामी नारायण गुरूकुल के प्रमुख स्वामी, श्री माधवप्रिय दास स्वामी जी के श्रीमुख से हो रही श्रीमद् भागवत कथा के समापन अवसर पर सहभाग कर स्वामी चिदानंद सरस्वती ने आध्यात्मिक जीवन में तीन स्तंभ ‘‘सेवा, साधना और स्वच्छता’’ पर प्रेरणादायक उद्बोधन दिया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि स्वच्छता, मानवता और पर्यावरण की सेवा का एक अद्भुत स्वरूप है। जब हम अपने आस-पास को साफ रखते हैं, तो हम दूसरों की सेवा कर रहे होते हैं और अपने समुदाय और धरती के कल्याण में योगदान दे रहे होते हैं।
स्वामी जी ने कहा कि “सेवा सबसे उच्चतम स्वरूप की पूजा है,” जब हम दूसरों की सेवा करते हैं अर्थात् हम भगवान की सेवा कर रहे होते हैं। स्वच्छता एक बहुत सरल परन्तु शक्तिशाली माध्यम है सेवा का, सेवा के माध्यम से सम्पूर्ण मानवता के प्रति प्रेम और करुणा व्यक्त कर सकते हैं।
स्वामी जी ने कहा कि जहां पर आप कथा श्रवण कर रहे हैं वह स्थान देवात्मा हिमालय की तलहटी और पवित्र गंगा जी के किनारे बसे ऋषिकेश का दिव्य वातावरण है, यहां पर सहज ही भक्ति की शक्ति हमें प्राप्त होती है। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक विधाओं से मन, शरीर और आत्मा शुद्ध होेती है और स्वच्छता को दैनिक जीवन का अंग, व्यवहार, संस्कार और अभ्यास बनाने पर न केवल हमारे आस-पास के वातावरण को साफ रख सकते हैं बल्कि पूरे वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भी भर सकते हैं।
स्वामी जी ने कहा कि स्वच्छता, पूजा का एक दिव्य स्वरूप है। जैसे हम अपने मंदिरों और पूजा स्थलों को साफ करते हैं, वैसे ही हमें अपने घरों और आस-पास को भी साफ रखना होगा। यह सफाई का कार्य हमारे जीवन में दिव्यता की उपस्थिति के प्रति सम्मान और श्रद्धा को दिखाने का एक दिव्य अवसर है।
स्वामी जी ने कहा कि सफाई का कार्य एक तरह की पूजा का कार्य है। जब हम भक्ति और ध्यान के साथ सफाई करते हैं, तो हम पृथ्वी व प्रकृति के प्रति अपने प्रेम और सम्मान की भावना को अर्पित कर रहे होते हैं।
स्वामी जी ने कहा कि स्वच्छता एक सार्वभौमिक मूल्य है जो सांस्कृतिक और धार्मिक सीमाओं से परे हैं। स्वच्छता, सभी धर्मों का एक मौलिक सिद्धान्त है। जब हम स्वच्छता का अभ्यास करते हैं, तो हम अपनी आस्था व विश्वास की शिक्षाओं के साथ सामंजस्य पूर्वक जी सकते हैं। स्वच्छता एक सामूहिक जिम्मेदारी भी है इसलिये एक स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण बनाने में हम सभी की भूमिका महत्वपूर्ण है।
स्वामी ने कहा कि स्वच्छता से तात्पर्य केवल शारीरिक स्वच्छता से ही नहीं है बल्कि मानसिक और भावनात्मक शुद्धता से भी है। जब हम अपने आस-पास को साफ रखते हैं, तो हम एक सकारात्मक और प्रेरणादायक वातावरण बनाते हैं जिससे हमारी आध्यात्मिक वृद्धि होती है। हमारी कथायें हमें यही संदेश देती है कि स्वच्छता हमारे आंतरिक स्थिति का प्रतिबिंब है, इससे हम अपने तन और मन को भी शुद्ध कर सकते हैं और अपने स्व से भी जुड़ सकते हैं।
श्री माधवप्रिय दास स्वामी जी ने कहा कि परमार्थ निकेतन एक दिव्य व अद्भुत स्थल है। पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज देश ही नहीं पूरे विश्व में समाज व पर्यावरण की अद्भुत सेवा कर रहे हैं। मैने तो उनकी सेवाओं को न केवल भारत में बल्कि विश्व के अनेक देशों में भी देखा हंै। हिन्दूधर्म विश्व कोश के रूप में पूरे समाज के लिये दिव्य उपहार, कैलास मानसरोवर पर आश्रमों और अस्पताल की स्थापना, देश व विदेश में गुरूकुलों की स्थापना की श्रृंखला, निःशुल्क स्वास्थ्य सेवायें और पर्यावरण संरक्षण में स्वामी जी का अद्भुत योगदान है। स्वामी जी का केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में सम्मान है। हमारी संस्था व सभी संत, पूज्य स्वामी जी का तहे दिल से आदर करते हैं। वर्तमान समय में पूरे समाज को ऐसे मार्गदर्शन की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि हमारी संस्था स्वामी नारायण गुरूकुल और स्वामी जी के मार्गदर्शन में संचालित ग्लोबल इंटरफेथ वाश एलायंस (जीवा) दोनों ने मिलकर सेवा व स्वच्छता के अनेक उपक्रम किये हैं और आगे भी मिलकर कार्य करेंगे।
स्वामी जी ने कहा कि आइए हम सभी स्वच्छता के प्रति प्रतिबद्ध हों और हम स्वच्छता को अपने दैनिक जीवन और आध्यात्मिक अभ्यास का हिस्सा बनाएं तथा मिलकर, हम एक ऐसी दुनिया बनायें जो स्वच्छ, स्वस्थ और सामंजस्यपूर्ण हो।