आस्थाहरिद्वार

मुट्ठी भर श्री कृष्ण

16 कलाओं में निष्णात भगवान श्री कृष्ण

डॉ० हरिनारायण जाेशी “अंजान”

 हरिद्वार। यह आम धारणा में है कि श्री कृष्ण 16 कलाओं में निष्णात हैं। उन्हें न तो एक पात्र में समाहित किया जा सकता है और ना ही उनके रूप स्वरूप और कृतियों को एक ग्रंथ में लिखा जा सकता है। इसलिए उनके भक्तों ने, अनुयायियों ने, प्रशंसकों ने, धर्मावलंबियों ने, आध्यात्मिक ज्ञान मार्गियों ने, यहां तक की विज्ञान की वास्तविक आध्यात्मिक समझ रखने वालों ने भी उनके अलग-अलग रूप को पकड़ा और उसमें ही लीन हो गए। सूरदास ने उनके वात्सल्य रूप को पकड़ा और कृष्णमय हो गए। राधा मीरा ने उनके सौंदर्य को पकड़ा और उन्हीं में रच बस गए। आध्यात्मिक चेतन शील मनुष्य ने उनके मुख से निसृत गीता ज्ञान को पकड़ा। गोपियों ने उनके भोलेपन निश्छल प्रेम की उमंग और बालपन के नटखट स्वरूप के दर्शन किए। यशोदा गोपियों सहित उनके वात्सल्य में ही खो गई।
     लेकिन कृष्ण के बस में सब थे और कृष्ण एकदम अछूते। फिर भी कुंती ,अर्जुन , द्रोपदी, भीष्म, विदुर आदि ने उनके ईश्वरीय रूप को जाना और मनमाना भी करवा लिया। फिर भी वह कृष्ण की उस थाह तक नहीं पहुंच सके जहां श्री कृष्ण वास्तविक थे। क्योंकि वे वहां भी थे जहां वे दिखते नहीं थे और यहीं से श्रीकृष्ण को समझना बहुत असंभव हो जाता है। इस पृथ्वी लाेक में नर रूप में भी श्रीकृृष्ण ही सबसे चतुर हैं इसलिए उन्हें छलिया भी कहा जाता है। महाभारत हाेने का जिम्मा वे ईश्वरीय रूप में ताे स्वीकारते हैं लेकिन नर रूप में स्पष्ट मना कर देते हैं। और कोई जिम्मेदारी नहीं लेते हैं ।
 वे कहते हैं कि दुर्याेधन ने पांच गांव तक नहीं दिए। फिर ऐसे में तो कमजोर से कमजोर भी युद्ध करता और पांडवों का युद्ध करना धर्म सम्मत हो गया था। लेकिन जब युद्ध हुआ ताे काैरव पक्ष ही जीतता परंतु उन्हाेने जीतना ही नहीं चाहा। वे ये भी कह देते हैं कि यहां यहां पर युद्ध मेरी सहायता के बावजूद भी पलट सकता था।१. भीष्म ने प्रतीज्ञा कि की ऐसा नहीं हाे सकता कि भीष्म ताे हथियार उठाये और कृष्ण न उठाये ताे उन्हाेने अपनी प्रतीज्ञा पूर्ण की। मैं अर्थात कृष्ण हथियार उठाने के बाद भी उनका वध नहीं कर सकता था क्याेंकि वे इच्छा मृत्युधारी थे। लेकिन भीष्म ने अपने आप ही कह दिया कि उनके सामने शिखंडी खड़ा कर दो ताकि वे हथियार ही न चला पाए २.द्राेणाचार्य जानते थे कि अश्वस्थामा मृत्यु से परे है फिर भी भ्रमित हाेकर हथियार छाेड़कर युद्धभूमि में ध्यान में बैठ गये ३. युद्ध जब अनीति का ही काैरव लड़ रहे थे ताे सूर्य छिपने के बाद भी लड़ लेते। जयतरथ बचता और अर्जुन मारा जाता। ४़ सेनापति बनने के बाद कर्ण ने माता गांधारी ये युद्ध जीतने और अर्जुन के वध का आशीर्वाद चाहा ताे गांधारी अर्जुन वध का आशीर्वाद न दे सकी। यदि कर्ण जैसा महारथी और गांधारी का आशीर्वाद संग हाे ताे जीत काैन राेक देता? ५. यह कि दुर्याेधन ने जीवनकाल में मुझे ईश्वरीय रूप में तक स्वीकार कर दिया लेकिन कभी सलाह नहीं मानी। फिर अन्त में माता के समक्ष नग्न शरीर न जाने पर लंगाेट पहनने की सलाह ही क्याें मान ली? बस यही कि श्री कृष्ण के हो जाओ तो वे संपूर्ण आपकी मुट्ठी में हैं और प्रश्नों में तो वे अथाह हैं, अनंत हैं। पहुंच से एकदम बहुत बाहर हैं। उत्तरों की श्रृंखलाओं में भी प्रश्न ही प्रश्न हैं। जै जै श्रीकृृष्ण।

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