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उत्तराखंड में घरों की चौखटे आज भी करती है अपनों का इंतजार, धोनी और मणि जोशी के दरवाजे  पर बैठे  इस सचित्र से  घरों की झलकती रौनक

डॉ हरिनारायण जोशी

उत्तराखंड के पहाड़ों में अधिकांश जातियां मुगलकालीन शासन में सुरक्षित से सुरक्षित स्थानों में आकर बसी हैं। इन जातियों में अधिकांश ने उत्तराखंड क्षेत्र को ही सबसे अधिक सुरक्षित माना होगा। क्योंकि अन्य किसी भी पहाड़ी राज्य में इस तरह के सुदूर पहाड़ों में घर नहीं हैं। वह आमतौर पर समतल स्थान में हैं। जबकि उत्तराखंड में यह ऊंचे ऊंचे पहाड़ों, घाटियों, तलहटों और अति दुर्गम से दुर्गम स्थानों पर हैं। तब के स्वाभिमानी और पुरुषार्थी लोगों ने अपने मूल स्थान की स्थापित कला से यहां घरों का निर्माण किया।

उत्तर प्रदेश में जब चौधरी चरण सिंह मुख्यमंत्री थे तो उत्तराखंड का एक प्रतिनिधिमंडल असुविधाओं के कारण उत्तराखंड को ओबीसी का दर्जा दिलाने के लिए उनके पास पहुंचा। तब चौधरी चरण सिंह जी ने एक सपाट उत्तर दिया था कि यहां पर तो लोगों के घर बड़े पक्के होते हैं, तो ऐसे क्षेत्र को ओबीसी का दर्जा कैसे दिया जा सकता है? प्रतिनिधिमंडल में किसी न किसी ने यह जवाब तो अवश्य दिया होगा कि पहाड़ों पर ऐसी मिट्टी नहीं होती है की मिट्टी के घर बनाए जा सकें या उनको टिकाऊ किया जा सके तो शायद उनकी बात सुनी ही ना हो लेकिन जो भी रहा हो उत्तराखंड को ओबीसी का दर्जा नहीं मिला। उत्तराखंड में पहले हर घर दो मंजिला हुआ करते थे। पहले तल पर पशुओं को बांधने का स्थान रखा जाता था और ऊपरी तल पर घर का आवास होता था‌। बीच में सीढ़ी बरामदे का भी काम करती थीं। अब लोग अपनी सुविधा, संपन्नता और आवश्यकता के अनुसार आधुनिक घर बना रहे हैं। किंतु फिर भी बहुत से घर आज भी इसी पौराणिक शैली में है।
उत्तराखंड के पहाड़ों ने अनेक महान विभूतियों को पैदा किया है। अब तक प्रधानमंत्री के पद को छोड़कर लगभग देश के सभी उच्चस्थ पदों पर यहां के निवासी प्रतिष्ठित हो चुके हैं। हेमवती नंदन बहुगुणा तब जल्दबाजी में कांग्रेस नहीं छोड़ते और पंडित नारायण दत्त तिवारी 75 की आयु में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री नहीं बनते तो इन दोनों का प्रधानमंत्री बनने का अवसर भी था। हालांकि गोविंद बल्लभ पंत के आगे यह नाम जुड़ा है किंतु उन्हें भारत का प्रधानमंत्री तो नहीं कहा जा सकता। वर्तमान में उत्तराखंड इस अवसर को खो चुका है। लेकिन संभावनाएं अभी भी हैं और योगी आदित्यनाथ इस संभावना के सूत्र को आशावान कर सकते हैं।

क्रिकेट जगत के प्रसिद्ध मिस्टर कूल कैप्टन महेंद्र सिंह धोनी का संबंध भी इस राज्य से है। अब क्रिकेट जगत से फुर्सत के क्षणों में वह उत्तराखंड आते जाते रहते हैं। यहां के पारंपरिक लोकगीतों पर नृत्य करते और उनका आनंद उठाते रहते हैं। कुमाऊं के अल्मोड़ा जिले में वे अपने पैतृक मकान की देहरी पर बैठे हैं जबकि  आईएफएस मणि जोशी टिहरी गढ़वाल के टिहरी जिले के अपने गांव सोन्नी में भतीजे के घर की देहरी पर बैठी हैं। दोनों घरों की सामान्य बनावट एक जैसी है।


कभी उत्तराखंड के इन घरों मे, इन घरों के आंगन-चौक में , सीढ़ियो में, देहरियों में ऐसी ही रौनक रहती थी और लोग एक परिवार की तरह इसी तरह से सुशोभित होते थे।
डॉ० हरिनारायण जोशी अंजान

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