डॉ० हरिनारायण जाेशी “अंजान”
सत्यम शिवम सुंदरम –
सत्यम शिवम सुंदरम के प्रत्यक्ष साकारिकता के दिन हैं। शिव की सत्ता है संपूर्ण ब्रह्मांड में। और हरिद्वार में कनखल नामक स्थान धर्म ध्वजाओं की उत्पत्ति का संवाहक ही नहीं अपितु मानव सृष्टि रचना का साक्षी भी है। धार्मिक ऐतिहासिकता में राजा दक्षप्रजापति का बहुत महत्वपूर्ण नाम है। उनके साम्राज्य की कनखल नामक स्थान पर राजधानी थी। यह स्थान धरती पर स्वर्गसम माना गया है। जाे पहाड़ और शिव के अधिवास का आंगन रूप में था। ग्रन्थाें में दक्ष की 26 पुत्रियां बतायी गई हैं। दिति और अदिति भी उनकी पुत्रियां थीं। दिति से दानव और अदिति से देवताओं की उत्पत्ति मानी गई है। अर्थात वे सारे सांसारिक स्वरूप के जनक भी हैं, इसलिए भी दक्षप्रजापति का विशेष महत्व हाे जाता है। उनकी पुत्री सतीजी शिवमय थी और मात्र उन्हीं का वरण, उन्हीं से विवाह चाहती थीं।
शिव के वैरागी अवधूत रूप स्वरूप, स्वभाव और कुछ अज्ञानता के कारण भी दक्षप्रजापति सहमत नहीं थे किन्तु सतीजी की एकनिष्ठा के कारण शिव सती का विवाह सम्पन्न ताे हाे गया। किन्तु राजा दक्षप्रजापति अपने वैभव के सामने शिव काे स्वीकार नहीं कर पाये। सतीजी के समझाने पर भी कि यही हैं जो त्रिलाेक पति हैं, फिर भी दक्षप्रजापति की समझ में आया नहीं। महायज्ञ में भी उन्हाेने शिव काे निमन्त्रण देना उचित नहीं समझा। सतीजी परमेश्वर शिव की सलाह के विपरीत पिता का मान रखने के लिए यज्ञ में सम्मिलित हई। किन्तु वहां पति का अपमान सह न सकी और स्वअग्नि प्रज्ज्वलित कर शरीर काे दग्ध कर दिया। यह स्थान कनखल में ही सतीकुंड के नाम से ख्यात और पूजित है। भगवान शंकर के गणाें ने क्राेध में राजा दक्ष का यज्ञ विध्वंस कर दिया और वीरभद्र ने दक्ष प्रजापति का सिर धड़ से अलग कर दिया। देवताओं की विनती पर भगवान शंकर ने बकरे का सिर लगाकर दक्षप्रजापति काे जीवनदान दिया। तब दक्षप्रजापति ने अपने राज्य में शिव का प्रथम मंदिर स्थापित किया और शिव पूजन विधान प्रारम्भ किया। शिव काे समर्पित यह मंदिर दक्षप्रजापति के नाम से जग प्रसिद्ध है। 51 शक्ति पीठ भी सतीजी की दग्ध देह के विभिन्न अंशाें से प्रतिष्ठापित हुई हैं। इस मंदिर के महत्व काे उत्तराखण्ड सरकार द्वारा अधिकाधिक प्रचारित करने की आवश्यकता है तथा सतीकुण्ड का उचित रख-रखाव भी परम आवश्यक है।
जै शिव शक्ति।