उत्तराखंडहरिद्वार

ब्रह्मांड का भी  मूल आधार है  प्रेम शब्द – डॉ० हरिनारायण जोशी अंजान

 

प्रेम और गढ़वाली शब्द संपदा-

प्रेम शब्द इतना ही विस्तृत है जितना स्वयं ब्रह्मांड। यहां तक कि ब्रह्मांड का मूल आधार भी प्रेम ही है। यदि सृजन कर्ता प्रेम की भावनाव्यक्ति नहीं उत्पन्न करता तो सारा संसार ही ऊसर जैसा होता। एकदम रेगिस्तान जैसा। नीरस-उबाऊ । लेकिन उसने हर प्राणीमात्र में यहां तक कि अचर वस्तुओं के भीतर भी प्रेम का बीजारोपण कर दिया। और इसे शाश्वत बना दिया। प्रेम केवल अनुभूति मात्र नहीं है अपितु यह हर दृष्टि से खुले रूप में व्यक्त और अव्यक्त है। और विशेष यह कि दोनों ही प्रभावशाली हैं। सृष्टिकर्ता ने काम क्रोध मोह लोभ की प्रवृत्तियों का सृजन इस प्रकार से कर दिया है कि सामान्य जन तो छोड़िए ऋषि, मुनि, योगी और तपस्वी भी सहजता से नहीं कह सकते कि वह इससे मुक्त हैं। मोह भी प्रेम की एक विधा है और सारा संसार इससे एक डोर में बंधा रहता है। इसी मोह से सहायता, मदद, स्वार्थ और संवेदनाओं का जन्म हुआ। लेकिन जब हम प्रेम को सिकोड़ते हैं और उसे नायक-नायिका के मध्य जोड़ते हैं तो भी इसका अस्तित्व कम नहीं होता है और इसका आयतन उसी तरह से विस्तृत रहता है जिस तरह से ब्रह्मांड में सामान्य रूप से प्यार की अनुभूति है बल्कि यहां पर जुड़ने से इसके एहसास और खूबसूरती में चार चांद और लग जाते हैं।

संसार भर में कई ऐसे किस्से हैं जो इसी प्रेम से स्वर्णिम इतिहास बना गए और अमरत्व को भी प्राप्त हो गए। उन्होंने अपने जीवन में कोई युद्ध नहीं जीता और नहीं उन्होंने कोई किसी तरह का वैज्ञानिक आविष्कार ही किया। लेकिन प्रेम के उच्चतर शिखर तक पहुंचे और उसी में बादशाही हासिल कर दी। यहां तक कि उनके प्रेर्णेता भी अमर हो गए और उनके नाम पर तो अंतर्राष्ट्रीय दिवस ही मनाए जाने लगे। जैसे वैलेंटाइन डे आदि।

दूसरी ओर गढ़वाली भाषा में तो प्रेम के लिए एक अनंत शब्द का उपयोग किया गया है और वह शब्द है माया। प्रेमी प्रेमिका मायादार। यह शब्द ऐसा ही है जैसे हरि अनंत हरि कथा अनंता। जिसका कहीं और छोर ही नहीं है। जबकि माया तो सिर्फ और सिर्फ भगवान श्री कृष्ण के अधीन है बाकी वह किसी के बस में भी आती नहीं है। न जाने इस शब्द की उत्पत्ति कैसे और किस प्रकार हुई होगी। हो सकता है इस माया का अर्थ संपूर्ण ब्रह्मांड या भवसागर से हो। क्योंकि लोकगीतों में यह भी प्रचलित है कि जैकी माया नदी पार वैका बगण् का दिन। अर्थात जिसका प्रेमी या प्रेमिका नदी के उस पार हों तो उनके तो बहने के ही दिन आ गए समझो। यह इतना अपरिमित है की तराजू न तोली देण जैकी माया बौत। अर्थात जिसका प्रेम ज्यादा हो उसे किसी तराजू से भी नहीं तोला जा सकता। वहीं बेवफा प्रेमियों के लिए माया का सौदेर जैसा शब्द भी है। प्रेमिका या प्रेमीमन यह स्पष्ट धाध भी लगाता है की भ्रम च त् तोड़ी जा और माया च त् जोड़ी जा। अर्थात किसी भी तरह का कोई भ्रम है तो उसको तोड़ देना लेकिन यदि वह सचमुच माया है तो उसको हर हाल में जोड़ देना। भोटांत प्रांत के राजा की बेटी मणिमाला तो अपने प्रेमी श्रीकृष्ण को यह चुनौती देती है कि सच्चू मायादार वैल्यू त् डोला ढसकैकी ली जैलू। अर्थात हे! कृष्ण यदि तू सच्चा प्रेमी होगा तो मेरा डोला सजाकर ले जाएगा।

लेकिन यह माया इतनी साधारण नहीं है जैसा इसका नाम है वैसी ही इसकी परिणति है। यह व्यक्त और अव्यक्त शब्दों और भावनाओं में नहीं सिमट जाती और बाहर छलक आती है। अव्यक्त को भी यह व्यक्त कर देती है। जब नदी, पहाड़ ,जंगल फूल, भंवरे, सबको इसके होने का आभास होता है तो प्रेमी आश्चर्यचकित होकर स्वयं से स्वयं ही प्रश्न करते हैं कि कू बेशर्म होलु तों सणी तेरी मेरी माया बिंगाणु। अर्थात ऐसा कौन सा बेशर्म है जो प्रकृति के इन अवयबों को हमारी माया को एक-एक करके समझा रहा है। गढ़वाली बोली मैं यूं तो हर तरह के एहसास के लिए एक नया और स्पष्ट शब्द है लेकिन प्रेम के लिए तो उसने बहुत ही विस्तृत शब्दावली का उपयोग किया है जो अन्यत्र नहीं है।

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