मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वामी चिदानंद मुनि स्वामी मुकदानंद की अध्यक्षता में महाकुम्भ की आस्था और जलवायु सम्मेलन
प्रधान संपादक कमल मिश्रा
प्रयागराज 16 फरवरी। उत्तर प्रदेश सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा आयोजित ‘महाकुम्भ की आस्था और जलवायु सम्मेलन, 2025‘ विषय पर एक महत्वपूर्ण जलवायु सम्मेलन, महाकुंभ मेला क्षेत्र, सेक्टर 25, प्रयागराज में आयोजित किया गया। यह आयोजन भारत सहित विश्व के सबसे बड़े, विशाल व अद्भुत कुंभ मेला में आयोजित किया गया।
इस अवसर पर पूज्य संत, धर्मगुरु, पर्यावरण विशेषज्ञ, और सरकारी अधिकारी एकत्र हुए, जिन्होंने जलवायु परिवर्तन के विषयों पर गहन चिंतन-मंथन व समाधानों पर चर्चा की।
महाकुम्भ, विश्व का अद्भुत व अलौकिक आयोजन है ऐसे अवसर पर धार्मिक संस्थाओं, धर्मगुरूओं और पूज्य संतों के पावन सान्निध्य में जलवायु परिवर्तन पर जागरूकता और उनके सहयोग से पर्यावरण संरक्षण की दिशा में पहल एक अद्भुत कार्य है।
उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ ने इस आयोजन की महत्ता पर प्रकाश डालते हुये, कुंभ मेला के ऐतिहासिक महत्व और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए केन्द्र सरकार व राज्य सरकार की पहलों के बारे में सभी को अवगत कराया।
माननीय मुख्यमंत्री जी ने वन्य जीवों के प्रति संवेदना जागृत करने का संदेश देते हुये कहा कि हमें अपने वेदों, शास्त्रों और उपनिषद्ों के संदेशों को जीवन में उतारना होगा। अपने स्वार्थ कि लिये धरती माता को प्रदूषित न करते व सिंगल यूज प्लास्टिक को पूरी तरह बंद करने का आह्वान करते हुये कहा कि एक पेड़ माँ के नाम और दूसरा पेड़ आस्था के नाम।
माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा 10 करोड़ से अधिक एलपीजी कनेक्शन वितरित करने, इलेक्ट्रिक बसे और ऐसे अनेक पहलों को साझा किया। उन्होंने कहा कि संगम का जल इतना स्वच्छ किया गया कि आज से 10 वर्ष पहले ऐसा कभी नहीं देखा होगा। उन्होंने धरती माता के जीवन चक्र को व्यवस्थित रखने का संदेश दिया। महाकुम्भ का यही संदेेश है कि आस्था के साथ जलवायु परिवर्तन पर भी ध्यान देना होगा।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने क्लाइमेंट चेंज सम्मेलन में उद्बोधन देते हुये कहा कि जलवायु परिवर्तन में संत, संस्था, समाज और सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण है। स्वामी जी ने कहा कि अब समय आ गया कि हम यूज एंड थ्रो कल्चर से यूज एंड ग्रो कल्चर की ओर बढ़े। दैनिक जीवन में जो चीजें हम उपयोग करते हैं, उनका हम सिर्फ इस्तेमाल कर के फेंक देते हैं। इस सोच को बदलकर हमें यूज एंड ग्रो कल्चर को अपनाना होगा, हम जो भी वस्तुएं उपयोग करें, उनका पुनः उपयोग करें।
हमें ग्रीड कल्चर से ग्रीन कल्चर, नीड कल्चर से नए कल्चर की ओर बढ़ना होगा तथा हमें इकोनामी के साथ इकोलाजी पर भी विशेष ध्यान देना होगा। हमें सस्टेनेबल विकास हेतु डीकार्बोनाइजेशन की ओर बढ़ना होगा। जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में सबसे महत्वपूर्ण कदम डीकार्बोनाइजेशन है और इसके लिये ग्रीन ब्रांड कल्चर को विकसित करना होगा।
ऐसे ब्रांड्स को बढ़ावा देना होगा जो पर्यावरण संरक्षण के लिये जिम्मेदार हों। हमें यह समझना होगा कि किस ब्रांड का कार्बन उत्सर्जन कितना है और उसी आधार पर उन्हें प्राथमिकता देनी होगी।
इस अवसर पर स्वामी जी ने सीएसआर (कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) के साथ सीसीआर (सस्टेनेबिलिटी सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) पर भी ध्यान देना होगा। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर अपनी भूमिका निभाएं। अब समय आ गया कि हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से ऋषि इंटेलिजेंस (आरआई) की ओर बढ़े ताकि हमारे ऋषियों का जो ज्ञान है वह आने वाली पीढ़ियों को भी मिलता रहे। हमें सिर्फ तकनीकी प्रगति नहीं, बल्कि इसके प्रभावों को भी समझना होगा।
इस अवसर पर स्वामी जी ने हट कल्चर और हाट कल्चर को बढ़ावा देने का आह्वान करते हुये मेरा झोला मेरी शान का संदेश दिया।
प्रथम सत्र में पर्यावरण संरक्षण में धार्मिक नेताओं की भूमिका पर स्वामी मुकुंदानन्द जी ने धर्म और पर्यावरण के बीच के संबंधों पर चर्चा की। उन्होंने धार्मिक संस्थाओं से पर्यावरण संरक्षण के लिए सक्रिय पहल करने का आह्वान किया।
इस सत्र में शालिनी मेहरोत्रा (हर्टफुलनेस इंस्टीट्यूट), स्मृति गौर सिंह (अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी), और डॉ. अरविंद कुमार (लंग केयर फाउंडेशन के संस्थापक) ने भी अपने विचार साझा किए।
दूसरे सत्र में पवित्र नदियों, जल सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन पर डॉ. राजेंद्र सिंह (भारत के जलविज्ञानी और ‘वाटरमैन’ ने पवित्र नदियों के संरक्षण पर जोर दिया और जल सुरक्षा के महत्व पर चर्चा की। अन्य विशेषज्ञों ने पवित्र नदियों के संरक्षण को धार्मिक और सांस्कृतिक कर्तव्य बताया और इसे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मददगार बताया।
तीसरे सत्र में सतत धार्मिक केंद्र और धार्मिक आयोजन पर प्रोफेसर चंद्रमौली उपाध्याय (श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के ट्रस्टी) और अचार्य हरी दास गुप्ता (कैलाश मानसरोवर) ने धार्मिक केंद्रों में पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ाने की आवश्यकता पर चर्चा की। इस सत्र में डॉ. मनीषा वी. रामेश (अमृता विश्वविद्यालय) और श्री सत्यब्रत साहू, आईएएस (ओडिशा सरकार) ने धार्मिक संस्थाओं में सतत व सुरक्षित प्रथाओं के महत्व पर अपने विचार साझा किए।
चैथे सत्र में सरकारों की भूमिका में विश्वास आधारित जलवायु क्रियाएँ, इस सत्र में सरकारी अधिकारियों और धार्मिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ विश्वास-आधारित कार्यों पर चर्चा की और इस पर विचार किया कि कैसे सरकारें धार्मिक संगठनों के साथ मिलकर प्रभावी कदम उठा सकती हैं।
पांचवे सत्र में मिशन लाइफ – सतत जीवनशैली को बढ़ावा देना में स्वामी आत्मश्रद्धानंद (रामकृष्ण मिशन आश्रम, कानपुर) और श्री आर. आर. रश्मि, टेरी के विशेषज्ञ ने व्यक्तिगत स्तर पर सतत जीवनशैली अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया और उदाहरण दिए कि कैसे अपने जीवन में किये छोटे बदलाव पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।
छटवे सत्र में जलवायु अनुकूलन, शमन और आपदा राहत में धार्मिक संगठनों की भूमिका पर चर्चा हुई। इस सत्र में धार्मिक संगठनों के योगदान पर चर्चा की गई, जिसमें श्री अरुण सुब्रमणियन (कांची कामकोटि पीठम के प्रतिनिधि) और अन्य विशेषज्ञों ने जलवायु अनुकूलन, शमन और आपदा राहत में धार्मिक संस्थाओं के कार्यों की समीक्षा की। इस सत्र में आपदा प्रबंधन की योजनाओं पर भी चर्चा हुई।
स्वागत संबोधन श्री अनिल कुमार, आईएएस, प्रधान सचिव, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग, उत्तर प्रदेश जी ने दिया। समापन सत्र में श्री मनोज कुमार सिंह, आईएएस (मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश सरकार) ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया और संकल्प पत्र जारी किया। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार के दृढ़ संकल्प को दोहराया और सभी को सतत विकास के रास्ते पर चलने के हेतु प्रेरित किया।
इस अवसर पर डॉ. चंद्र भूषण, अध्यक्ष और सीईओ इंटरनेशनल फोरम फॉर एन्वायर्नमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी, श्री रिकी केज, ग्राम्य अवार्ड विजेता संगीतकार, पर्यावरणविद और संयुक्त राष्ट्र के गुडविल एंबेसडर, श्री गुरदीप सिंह, अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक, एनटीपीसी लिमिटेड, श्री अरुण कुमार सक्सेना, माननीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग, उत्तर प्रदेश, श्री कृष्णपाल मलिक, माननीय राज्य मंत्री, आदि अनेक विभूतियों, वैज्ञानिकों और पर्यावरण विशेषज्ञों ने सहभाग किया।